आग लगी दिल में जब वो खफ़ा हुए , एहसास हुआ तब , जब वो जुदा हुए, करके वफ़ा वो हमे कुछ दे न सके , लेकिन दे गये बहुत कुछ जब वो वेबफा हुए ।
मेरी चाहत ने उसे खुशी दे दी, बदले में उसने मुझे सिर्फ खामोशी दे दी, खुदा से दुआ मांगी मरने की लेकिन, उसने भी तड़पने के लिए जिन्दगी दे दी ।
वक़्त ने कुछ ऐसा पैतरा आज़माया…, कौन अपना, कौन पराया, सब दिखाया उम्मीद लगा के बैठे थे जिन रिश्तों से उन्ही दोस्तों ने खाने में ज़हर मिलाया...!
ऐ बेवफा थाम ले मुझको मजबूर हूँ कितना , मुझको सजा न दे मैं बेकसूर हूँ कितना , तेरी बेवफ़ाई ने कर दिया है मुझे पागल , और लोग कहतें हैं मैं मगरूर ह…
मोहब्बत ऐसी थी कि उनको बता न सके , चोट दिल पे थी इसलिए दिखा न सके , हम चाहते तो नही थे उनसे दूर होना , मगर दूरी इतनी थी उसे हम मिटा न सके ।
ऐ बेवफा थाम ले मुझको मजबूर हूँ कितना , मुझको सजा न दे मैं बेकसूर हूँ कितना , तेरी बेवफ़ाई ने कर दिया है मुझे पागल , और लोग कहतें हैं मैं मगरूर हूँ…
ज़िन्दगी को देखने का सबका अपना - अपना नज़रिया होता है , कुछ लोग स्टेटस में ही दिल की बात कह देते है और कुछ लोग गीता पर हाथ रखकर भी सच नही बोलते ..…
UNKI YE KHWAISH HAI KI HUM ZUBAN SE IZHAAR KARE HAMARI YE AARZOO HAI KI VO DIL SE ZUBAN SAMAJH LE.
Ek hi kayal rehta hai uski bewafai kebaad.... Khudkushi kar lete hai kahi phir mohabbat na ho jaye
मोहब्बत के भी कुछ अंदाज़ होते हैं , जगती आँखों के भी कुछ ख्वाब होते हैं , जरुरी नहीं के गम में आँसू ही निकले , मुस्कुराती आँखों में भीशैलाब होते …
बहुत खामोशी से गुजरी जा रही है जिन्दगी, ना खुशियों की रौनक ना गमों का कोई शोर, आहिस्ता ही सही पर कट जायेगा ये सफ़र, ना आयेगा दिल में उसके सिवा कोई और…
किसी की याद में रोते नहीं हम, हमें चुपचाप जलना आ गया है, गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो, हमें कांटों पे चलना आ गया है।
खामोशी से बिखरना आ गया है, हमें अब खुद उजड़ना आ गया है, किसी को बेवफा कहते नहीं हम, हमें भी अब बदलना आ गया है,
इतनी शिद्दत से प्यार न करना कभी किसी से क्योंकि बहुत गहराई में जाने वाले अक्सर डूब जाते हैं
प्यार से बड़ा कोई धोखा नहीं होता बेवफाई से बड़ा कोई तोहफा नहीं होता कभी ना भूलना ऐ दोस्त अपनी दोस्ती को क्युकी इससे बड़ा कोई भरोसा नही होता
बरस जाये यहाँ भी कुछ नूर की बारिशें, के ईमान के शीशों पे बड़ी गर्द जमी है, उस तस्वीर को भी कर दे ताज़ा, जिनकी याद हमारे दिल में धुंधली सी पड़ी है।
रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे, बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ मैं।
वो मेरे रु-बा-रु आया भी तो बरसात के मौसम में, मेरे आँसू बह रहे थे और वो बरसात समझ बैठा।
मैं तेरे हिज्र की बरसात में कब तक भीगूँ, ऐसे मौसम में तो दीवारे भी गिर जाती हैं।
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