बारिशों से अदब-ए-मोहब्बत सीखो फ़राज़, अगर ये रूठ भी जाएँ, तो बरसती बहुत हैं।
बरस जाये यहाँ भी कुछ नूर की बारिशें, के ईमान के शीशों पे बड़ी गर्द जमी है, उस तस्वीर को भी कर दे ताज़ा, जिनकी याद हमारे दिल में धुंधली सी पड़ी है।
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिनकी आँखें देख कर, वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए।
बारिशें कुछ इस तरह से होती रहीं मुझ पे, ख्वाहिशें सूखती रहीं और पलकें रोतीं रहीं।
खुद भी रोता है मुझे भी रुला देता है, ये बारिश का मौसम उसकी याद दिला देता है।
रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे, बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ मैं।
वो मेरे रु-बा-रु आया भी तो बरसात के मौसम में, मेरे आँसू बह रहे थे और वो बरसात समझ बैठा।
आज मौसम कितना खुश गंवार हो गया, खत्म सभी का इंतज़ार हो गया, बारिश की बूंदे गिरी कुछ इस तरह से, लगा जैसे आसमान को ज़मीन से प्यार हो गया।
ये मौसम भी कितना प्यारा है, करती ये हवाएं कुछ इशारा है, जरा समझो इनके जज्बातों को, ये कह रही हैं किसी ने दिल से पुकारा है।
तुम्हें बारिश पसंद है मुझे बारिश में तुम, तुम्हें हँसना पसंद है मुझे हस्ती हुए तुम, तुम्हें बोलना पसंद है मुझे बोलते हुए तुम, तुम्हें सब कुछ पसंद है …
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलता हूँ घर से आजकल, वरना शौक तो आज भी है बारिशो में भीगने का।
मैं तेरे हिज्र की बरसात में कब तक भीगूँ, ऐसे मौसम में तो दीवारे भी गिर जाती हैं।
कल रात मैंने सारे ग़म आसमान को सुना दिए, आज मैं चुप हूँ और आसमान बरस रहा है।
जब भी होगी पहली बारिश, तुमको सामने पायेंगे, वो बूंदों से भरा चेहरा तुम्हारा हम देख तो पायेंगे।
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